LovE LifE LivE
Monday, May 23, 2011
रास्ते वाले अमलतास
गुजरते हुए उस रास्ते से
जो जाता था हॉस्पिटल से कॉलेज तक
सुबह सुबह बहुत जल्दी में
और लौटते हुए बहुत आराम से
कि दोनों तरफ
रास्ते के
कतार लगी है
फूलों से लदे
बहुत खुबसूरत अमलतास की
और खुश हो जाता था
मन ही मन
उनकी पीत आभा देखकर
फिर
एक दिन मौके से
हाथ बढाकर
तोड़ लिया एक गुच्छा
बहुत फब रहा था
वो मेरे हाथ में
अँगुलियों के बीच
उसकी अधखिली कलियाँ
बिलकुल पीले कमल की कलियों ka
chota pratiroop सी लग रही थी
जो तस्वीर में देखीं थी
बहुत बार
वैदेही या धन देवी के hathon में
और फिर
धीरे से
ले गया उसे
चेहरे के पास
और एक गहरी सांस ली
पर
उन खुबसूरत फूलों में
कोई खुशबू नहीं थी
का छोटा प्रतिरूप
Monday, May 9, 2011
मेरी मृत्यु के बाद
मुझे मत जलाना
क्योंकि मुझे जलन से बहुत डर लगता है
ऐसा करना
मुझे दफना ही देना
किसी सुनसान छोटी सी गुमनाम जगह में
गाड़ते हुए मुझे
ध्यान रखना एक बात का
सर पूरब और पैर मेरे पश्चिम में रखना
क्योंकि डूबता सूरज
बहुत पसंद है मुझे
मेरी देह पर
मिट्टी डालकर
लगा देना
घास बांस की
क्योंकि
बांस से मेरा अपनापा है
मेरी कब्र के चारों तरफ
(सिर्फ पैरों को छोड़कर)
लगाना खूब सारे अमलतास
ताकि उनके पीले peele फूल
बरसते रहे मेरे ऊपर
भरी गरमी में भी
पैरों वाली जगह भी
मत रखना खाली
वहां लगाना
एक पेड़ प्यारा पलाश का
कि उसके दहकते से लाल लाल फूल
मेरी देह के सूख चुके लहू में
तोड़ी सी गरमी दे सकें
और शायद पिघला दे
मेरी जमी हुई सांस को
कहना तो तुम्हें बहुत कुछ है
मेरी मृत्यु के
क्योंकि
जीवन से ज्यादा
इसी के बारे में सोचा है
पर फिर भी तुम्हें
कोशिश करूँगा
कि तुम्हें ज्यादा परेशानी न हो
मेरी मृत्यु के बाद
तुम
मेरे सिरहाने
एक शिला रखना
काले संगमरमर की
और लिखना उस पर
बिलकुल सफ़ेद सफ़ेद अक्षर
नाम लिखना मेरा
बड़े बड़े आकार में
ताकि कभी भूले भटके गुजरो उधर से
तो पहचान सको
ओह! तो यहाँ दफनाया था उसे
कभी मिलने की इच्छा हो तो
आना जरूर
तुमसे मिलना मुझे बहुत अच्छा लगता था
आओ तो साथ लाना कहीं से
पुष्प पारिजात के
सुना है
बहुत पवित्र होते हैं
Thursday, April 21, 2011
हे प्रिय सुनो !
हे प्रिय सुनो !
आज पूरे सत्य को
और छोड़ दो ग्लानि
मुझे स्वीकार न करने की
अगर कोई हो तो
हे प्रिय !
मुझे दुःख है कि
बिना जाने ही मैंने
तुम्हें
इजहार कर दिया
पर प्रिय
मुझे वो भाव
प्रेम ही जान पड़ा था
हे प्रिय !
सुना था कि
मित्रता प्रेम में बदलती है
पर
यहाँ थोड़ा
अलग हुआ
मेरी मित्रता और प्रेम ने
तुम्हारे लिए
साथ ही जन्म लिया
और मैंने इसे
प्रथम दृष्टिय प्रेम मान लिया
बिना तुम्हें नज़दीक से जाने ही
क्योंकि प्रेम यही होता है
ऐसा सुना था
पर प्रिय !
फिर मैंने तुम्हें जाना
धीरे धीरे
और प्रेम परास्त हो गया
एवं हमारी मित्रता
गहरी होती चली गयी
परिचय के साथ साथ
हे प्रिय !
माफ़ करना कि
तुम्हें लेकर
मैंने जीवन के स्वप्न संजोये
पर प्रिय
अब लगता है कि
मेरे जीवन का लक्ष्य तुम नहीं हो
माफ़ करना प्रिय
तुम्हें जीवन संगिनी समझा
पर प्रिय
अब तुम्हें जीवन भर की
सखी समझता हूँ
और विश्वास करो प्रिय
यह भाव मुझे
अधिक संतुष्ट करता है
बजाय उसके
जो तुम्हें बिना जाने ही
बुन लिए थे मैंने
पर प्रिय
इस रिश्ते को मत तोड़ना
तुम प्रिय थी
प्रिय हो
एवं सदैव रहोगी
पर हमारा प्रेम
साख्य भाव का है
न कि काम भाव का
कृष्ण राधा न सही
पर कृष्ण कृष्णा की तरह