Monday, December 27, 2010

आंसू

सिर्फ आंसूओं से नहीं कभी प्रायश्चित होता
पछताने भर से बीता समय नहीं लौटता
अपनी कल्पनाओं पर हम कभी मंद मंद मुस्काते थे
पर हाय आज वही हमें देख ठठाकर हंस रही है
क्या ये सच है संसार में कोई अपना नहीं होता
मोह माया में फंसा इंसान कुछ नही कर सकता
वो आलस्य था या कि वित्रिसना ही रही होगी
कि जल जहर में जलते गलते ख़त्म हो गये
अब क्या फायदा गलतियाँ गिनाने का
जब सब चरण पूर्णरूपेण niश्पादित हो गये
माना अब भी वक्त है तुम्हारे पास
पर जो आगे निकल गये वो तो निकल ही गये
हम कभी आगे थे उनसे
वो भी एक वक्त था
आज वो चोटियों पर है
और हम घाटियों से ताक रहे हैं

क्या जिंदगी जीने में इतने मग्न हो गये
कि जिंदगी सुनहरी करने के सब स्वप्न, स्वप्न रह गये
पर क्या सच जिन्दगी जी हमने ?
बस बहते रहे बहाव में
क्या इसे ही तैरना कहते हैं ?
ना, कभी तैरना तो हमने seekha ही नही
बस बहते रहे लहर में
डूबते उतरते रहे सहर में
काश कि वक्त उल्टा चलता
बीता समय पुनह मिलता
पगला गये हैं हम, अब कुछ पल्ले नहीं पड़ता
गलत राहों से मंजिल का निशाँ नहीं दिखता

आंसू, आंसू ही तो अब सहारा बन सकते हैं
इस माया मेखला को धूमिल कर सकते हैं
पर वो तो कब के ही सूख चुके हैं
या शायद अपना आस्तित्व खो चुके हैं
आंसुओं से आंसुओं तक यही हमारी कहानी है
इसमे बंद खुशियाँ क्या झूठी और बेमानी है ?

प्रश्न बहुत है पर उत्तर नहीं मिलता
मिलता है तो बस एक नया तोहफा
आंसुओं से भरा......




Wednesday, October 6, 2010

बाहर पानी बरस रहा है

बाहर पानी बरस रहा है

और यहाँ भीतर , कुछ दरक रहा है

दरक रहे हैं वो सपने

जो खुली पलकों से देखे थे

दरक रहे हैं विश्वास

जो बंद मुट्ठी में थमे थे

दरकने लगी है वो श्रद्धा

जो कलाई पर बंधी थी

दरक रही है वो मोलियाँ

जो रक्षासूत्र बनी थी

दरक रहे वो दर्पण

जिन्होंने दूजी ही दुनिया दिखाई थी

दरक रही है वो सरगम

जो कभी हमने गाई थी

दरक रहे हैं एनिकेट

जिन्होंने प्रवाह रोंका था

दरक रहे वो बंधन

जो हमको उन्मुक्त छोड़े थे

दरकने लगे हैं शब्द

जो लिखने के लिए थे

दरक रही वो कविता

जो सहर में बनी थी

बाहर पानी बरस रहा है

यहाँ भीतर कुछ दरक रहा है

पानी सिर्फ बाहर नहीं

अन्दर भी छलक रहा है

Monday, September 6, 2010

बन्द करो ये हत्यायें

किस धर्म में लिखा है

किसने कहा है

कौन तुम्हें प्रेरित कर रहा है

क्या तेरा दिल नहीं जानता

क्या तेरा मन नहीं मानता

क्या तू नहीं समझता

कि अत्याचार अधर्म का अवतार है

रे मनुष्य ! तू खुद को आस्तिक कहता है

रे मुर्ख ! आस्था के नाम पर बलि देता है

क्यों? आखिर कौनसी देवी है

जिसने तूझे मृत्यु हाथ में लेने दी

तूझे किसने ये स्वतंत्रता दी

कि तू किसी की जिंदगी ले

रे स्वार्थी ! क्या अँधा हे तेरा जमीर

या कि तू हाट में बेच आया है

क्यों नहीं सुनता इस मूक की पुकार

जो दर्द से तड़पकर दे रहा बद्दुआ

कौनसे धर्म का खुदा या इश्वर ईलाह का

कहता है कि अत्याचार करो

कौनसे ग्रन्थ में लिखा है

कि तुम मूक मार दो

किसने यह पट्टी पढ़ा दी

कि बलि से माँ खुश होगी

अरे अपनी रचना को नष्ट होते देखकर

किसका हृदय नहीं चीत्कारता

कौन है रे जो

स्वयं के बने को बिगाडता

रे स्वार्थ में अंधे

रे स्वयं शैल में जी रहे बन्दे

पट्टी हटा ये जो लगा रखी है

खोल दिल और देख कि

दर्द औरों को भी होता है

जिंदगी सिर्फ तुझ तक ही नहीं है सीमित

ये प्रपात कहीं और भी कलकता है

सुन इनकी पुकार

जो बेजुबान है

देख इनके दर्द से तड़पते देह

क्या इतना देखकर भी तेरा दिल नहीं पिघलता

तो जलाकर स्वयं को भस्म कर ले

धरा पर बोझ वैसे ही बहुत है

एक ओर कलि की एक ओर देत्य की

जरूरत नहीं है

जो दूसरों को न जीने दे

उसे स्वयं जीने का हक़ नहीं है

जो मारता है दूसरों को

उसे मरकर भी राहत नहीं है

बस याद रखना है तो

बस एक बात याद रखना

जो बोयेगा वो कटेगा

जैसा देगा वैसा पायेगा

समझ ले बस यही धर्म का सार है

सब कुछ उस दिव्य के नियमानुसार है

Saturday, September 4, 2010

How can I reach there
when no one knows me
what I am
what I want

Did they really thhhink about me
aaaaany...how
I doo not hope for best but is it wrong
to hope good?

I know that too
I'm not for that too
But lets hope there rite
to give an end to night

A new day
a great sunshine
to give little glitter my way...



Sun sets n rise
bt thats nt so simply ...rite..
The time which past
will never come back so fast

I remember the moments n make new too
but is that moments knoooows me????

I dont know
if they really think
that I tooo exist in world

Did I really so un-noticed....
why why whyyy
this all goes in this way
I not plan
not hope

But this going n going n going



I'm chasing to the end of the
RAINBOW
My treasure is hidden there

Would I able to found it or just I lost
There may be a world
that give me new hope....

But there still some ....who hate me here...For what I am
However I dont care...
OK I know thaat...
I'm not thee one
But Here I am What I am

So feel happy
so feel proudy
I am here & here I am

For no one else
but only myself....
So keep going n going n going......
This space b/w us will be shorten...

I'll reach surely to the end
the other end
Where I found that
for what I hope
What I need....


I'll reach n found
my treasure
mydream scape
my hope
my love
my life
n MYSELF

Friday, September 3, 2010

I'm getting nowhere
I'm reaching nowhere
where should I go
In which direction
Where is my hope................
I need you....
Come help me
I'm waiting here since birth.

Am I taken the wrong side
or I chooses wrong way
WHY I'm not.. meeting you..

In my way.........
I always watch your footprints....
to reach you...

I'm waiting to get you..............
Come..& join me
in my way; please help me
I need a support I need a love...
Come give me what I want..
Just I need that feeeeling
which give me strength
to fight back to stand adhere

Come give me my hoooope
Come help me out...........
I'm waiting for my true lllllove



In my day dreams
I watch your face
It's glittering.....giving rays of hope
Come & touch my soul
I neeed...I wait for u

whenever I alone .....
I think
you are there with me...........in my dreams
come & give me a hand....
so that I can...
Stand aside,,,,,,live my life



Thursday, March 4, 2010

वसंत - इंतजार का अंत

शून्य , शून्य अनंत शून्य
और नितांत खालीपन
पत्रविहीन पुष्पविहीन
पतझड़ में पड़ा पेड़
इंतजार वसंत का
अनादि अनंत का
इंतजार - इंतजार
वक्त पे आयी बहार
वृक्ष का वसंत से
इंतजार के अंत से
हो रहा मधुर मिलन



चांदनी का चाँद भी
हंस रहा
रैन का श्रृंगार भी
दमक रहा
सहर का सुन्दर सूर्य
गगन में गुपचुप आ गया
तम के तीक्ष्ण तन का अंत
खुशियों का हुआ है जन्म .............

Wednesday, March 3, 2010

मिल ही जाएगी

भले ही असीम अँधेरा हो

पर रोशनी की एक राह तो

मिल ही जाएगी

अविश्वास के इस मरूस्थल में

विश्वास की एक नदी

मिल ही जाएगी

दानवों के इस दर्दे दंगल में

फ़रिश्ते सी कोई आत्मा

मिल ही जाएगी

हमें इंतजार है तो बस इस ज्वार के उतरने का

किनारों की कंचन सीपियाँ

मिल ही जाएगी





कभी न कभी तो वह वक्त आएगा ही

जब इस ठूंठ पर भी

पत्तों के संग रंग बिरंगे पुष्पों का समां छाएगा ही

प्रतीक्षा के इस प्रताड़ित दरिये में
धैर्य की एक नाव है
भूत की उस किनारे से
मंझधार वर्तमान का तूफ़ान सहना है
इस तरह हमें भविष्य का सफ़र तय करना है

बदलाव

क्या कुछ बदल गया है
हम कभी कुछ थे
अब क्या हो गया है
दूसरों के खातिर
खुद को बदला
अब बदले की खातिर
फिर बदलना होगा
हमने आंसुओं का सागर पिया है
ये तुच्छ सरोवर क्या चीज़ है
जो गहराईओं में खोकर आकाश छुते हैं
उनके लिए ऊँचाइयाँ नजीज़ हैं
अंधेरों से उजाले पाने वाले
एक अमावस से नहीं डरते
सूरज के जो होते हैं मीत
वे तारों से नहीं बिछुड़ते
जो थामते हैं सफलता को
नहीं डरते विफलता से
बस अपने पे विश्वास रखना
खुद ही खुदा हो याद रखना