Thursday, March 4, 2010

वसंत - इंतजार का अंत

शून्य , शून्य अनंत शून्य
और नितांत खालीपन
पत्रविहीन पुष्पविहीन
पतझड़ में पड़ा पेड़
इंतजार वसंत का
अनादि अनंत का
इंतजार - इंतजार
वक्त पे आयी बहार
वृक्ष का वसंत से
इंतजार के अंत से
हो रहा मधुर मिलन



चांदनी का चाँद भी
हंस रहा
रैन का श्रृंगार भी
दमक रहा
सहर का सुन्दर सूर्य
गगन में गुपचुप आ गया
तम के तीक्ष्ण तन का अंत
खुशियों का हुआ है जन्म .............

Wednesday, March 3, 2010

मिल ही जाएगी

भले ही असीम अँधेरा हो

पर रोशनी की एक राह तो

मिल ही जाएगी

अविश्वास के इस मरूस्थल में

विश्वास की एक नदी

मिल ही जाएगी

दानवों के इस दर्दे दंगल में

फ़रिश्ते सी कोई आत्मा

मिल ही जाएगी

हमें इंतजार है तो बस इस ज्वार के उतरने का

किनारों की कंचन सीपियाँ

मिल ही जाएगी





कभी न कभी तो वह वक्त आएगा ही

जब इस ठूंठ पर भी

पत्तों के संग रंग बिरंगे पुष्पों का समां छाएगा ही

प्रतीक्षा के इस प्रताड़ित दरिये में
धैर्य की एक नाव है
भूत की उस किनारे से
मंझधार वर्तमान का तूफ़ान सहना है
इस तरह हमें भविष्य का सफ़र तय करना है

बदलाव

क्या कुछ बदल गया है
हम कभी कुछ थे
अब क्या हो गया है
दूसरों के खातिर
खुद को बदला
अब बदले की खातिर
फिर बदलना होगा
हमने आंसुओं का सागर पिया है
ये तुच्छ सरोवर क्या चीज़ है
जो गहराईओं में खोकर आकाश छुते हैं
उनके लिए ऊँचाइयाँ नजीज़ हैं
अंधेरों से उजाले पाने वाले
एक अमावस से नहीं डरते
सूरज के जो होते हैं मीत
वे तारों से नहीं बिछुड़ते
जो थामते हैं सफलता को
नहीं डरते विफलता से
बस अपने पे विश्वास रखना
खुद ही खुदा हो याद रखना