Wednesday, March 3, 2010

मिल ही जाएगी

भले ही असीम अँधेरा हो

पर रोशनी की एक राह तो

मिल ही जाएगी

अविश्वास के इस मरूस्थल में

विश्वास की एक नदी

मिल ही जाएगी

दानवों के इस दर्दे दंगल में

फ़रिश्ते सी कोई आत्मा

मिल ही जाएगी

हमें इंतजार है तो बस इस ज्वार के उतरने का

किनारों की कंचन सीपियाँ

मिल ही जाएगी





कभी न कभी तो वह वक्त आएगा ही

जब इस ठूंठ पर भी

पत्तों के संग रंग बिरंगे पुष्पों का समां छाएगा ही

प्रतीक्षा के इस प्रताड़ित दरिये में
धैर्य की एक नाव है
भूत की उस किनारे से
मंझधार वर्तमान का तूफ़ान सहना है
इस तरह हमें भविष्य का सफ़र तय करना है

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