Monday, September 6, 2010

बन्द करो ये हत्यायें

किस धर्म में लिखा है

किसने कहा है

कौन तुम्हें प्रेरित कर रहा है

क्या तेरा दिल नहीं जानता

क्या तेरा मन नहीं मानता

क्या तू नहीं समझता

कि अत्याचार अधर्म का अवतार है

रे मनुष्य ! तू खुद को आस्तिक कहता है

रे मुर्ख ! आस्था के नाम पर बलि देता है

क्यों? आखिर कौनसी देवी है

जिसने तूझे मृत्यु हाथ में लेने दी

तूझे किसने ये स्वतंत्रता दी

कि तू किसी की जिंदगी ले

रे स्वार्थी ! क्या अँधा हे तेरा जमीर

या कि तू हाट में बेच आया है

क्यों नहीं सुनता इस मूक की पुकार

जो दर्द से तड़पकर दे रहा बद्दुआ

कौनसे धर्म का खुदा या इश्वर ईलाह का

कहता है कि अत्याचार करो

कौनसे ग्रन्थ में लिखा है

कि तुम मूक मार दो

किसने यह पट्टी पढ़ा दी

कि बलि से माँ खुश होगी

अरे अपनी रचना को नष्ट होते देखकर

किसका हृदय नहीं चीत्कारता

कौन है रे जो

स्वयं के बने को बिगाडता

रे स्वार्थ में अंधे

रे स्वयं शैल में जी रहे बन्दे

पट्टी हटा ये जो लगा रखी है

खोल दिल और देख कि

दर्द औरों को भी होता है

जिंदगी सिर्फ तुझ तक ही नहीं है सीमित

ये प्रपात कहीं और भी कलकता है

सुन इनकी पुकार

जो बेजुबान है

देख इनके दर्द से तड़पते देह

क्या इतना देखकर भी तेरा दिल नहीं पिघलता

तो जलाकर स्वयं को भस्म कर ले

धरा पर बोझ वैसे ही बहुत है

एक ओर कलि की एक ओर देत्य की

जरूरत नहीं है

जो दूसरों को न जीने दे

उसे स्वयं जीने का हक़ नहीं है

जो मारता है दूसरों को

उसे मरकर भी राहत नहीं है

बस याद रखना है तो

बस एक बात याद रखना

जो बोयेगा वो कटेगा

जैसा देगा वैसा पायेगा

समझ ले बस यही धर्म का सार है

सब कुछ उस दिव्य के नियमानुसार है

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